8th Pay Commission Update ; केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए लंबे समय से प्रतीक्षित आठवें वेतन आयोग के कार्यान्वयन को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। केंद्र सरकार और आर्थिक विशेषज्ञों के बीच इस मुद्दे पर गहन विचार-विमर्श चल रहा है। प्रसिद्ध शोध संस्थान QuantEco Research द्वारा जारी ताजा विश्लेषण में चेतावनी दी गई है कि यदि इस घोषणा में और अधिक देरी हुई तो देश की आर्थिक परिस्थिति पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। अध्ययन में यह भी उल्लेख किया गया है कि इस विलंब के कारण आर्थिक विकास की गति में रुकावट आ सकती है और मुद्रास्फीति में असामान्य वृद्धि हो सकती है। भारतीय रिज़र्व बैंक को संभवतः वित्त वर्ष 2027-28 तक ब्याज दरों में संशोधन करना पड़ सकता है।
प्रशासनिक बाधाएं बनी मुख्य कारण
विश्वसनीय जानकारी के अनुसार, आठवें वेतन आयोग की अनुशंसाओं को क्रियान्वित करने में प्रशासनिक जटिलताएं सबसे बड़ी बाधा साबित हो रही हैं। प्रारंभिक अनुमान के अनुसार यह माना जा रहा था कि भुगतान की प्रक्रिया शीघ्र ही शुरू हो जाएगी, परंतु वर्तमान परिदृश्य यह संकेत देता है कि संपूर्ण कार्यान्वयन में न्यूनतम एक वर्ष का समय लग सकता है। विभागीय समन्वय और वित्तीय प्रबंधन से जुड़े मुद्दे इस देरी के प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं।
एकमुश्त बकाये की राशि से मिलेगा लाभ
इस विलंब के एक सकारात्मक पहलू की ओर विशेषज्ञ ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। करोड़ों केंद्रीय कर्मचारियों और सेवानिवृत्त कार्मिकों को एकमुश्त बड़ी बकाया राशि प्राप्त होगी। आर्थिक विश्लेषकों के अनुसार, यह परिस्थिति बाजार में उपभोक्ता मांग को गति प्रदान करेगी और मूल मुद्रास्फीति में तेजी आने की संभावना है। आवासीय किराए और सेवा क्षेत्र की दरों में भी महत्वपूर्ण बढ़ोतरी देखी जा सकती है। यह एकमुश्त भुगतान कर्मचारियों के लिए वित्तीय सुरक्षा का एक बड़ा स्रोत बन सकता है।
वेतन संरचना में प्रत्याशित परिवर्तन
रिपोर्ट के अनुसार, इस बार फिटमेंट गुणांक लगभग 2.0 के आसपास निर्धारित हो सकता है, जो सातवें वेतन आयोग के 2.57 की तुलना में अपेक्षाकृत कम है। इस संशोधन के परिणामस्वरूप न्यूनतम आधारभूत वेतन वर्तमान 18,000 रुपये से बढ़कर 35,000 से 37,000 रुपये के बीच हो सकता है। वेतन, विभिन्न भत्तों और पेंशन में इस संशोधन से सरकारी कोष पर 2 से 2.5 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार आने का अनुमान है, जो पूर्व आयोग की तुलना में दोगुना होगा।
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभाव
QuantEco Research के आकलन के अनुसार, आठवें वेतन आयोग के भुगतान से व्यक्तिगत अंतिम उपभोग व्यय में प्रतिवर्ष 65-80 बेसिस पॉइंट की वृद्धि संभव है। साथ ही सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर को 40-50 बेसिस पॉइंट तक का बल मिल सकता है। हालांकि, इससे राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 0.6 प्रतिशत तक बढ़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है। केंद्र सरकार को इस अतिरिक्त व्यय की पूर्ति के लिए नवीन राजस्व स्रोतों की तलाश करनी होगी।
कर व्यवस्था में सुधार की संभावना
वित्तीय विश्लेषकों का मत है कि सरकार इस आर्थिक चुनौती का सामना करने के लिए जीएसटी ढांचे में सुधार की दिशा में प्रयास कर सकती है। वर्ष 2026 की अंतिम तिमाही में उपकर मुआवजा व्यवस्था समाप्त होने की संभावना है, इसलिए यह अवधि कर सुधार के लिए उपयुक्त समय माना जा रहा है। इससे सरकार को अतिरिक्त आय के नए मार्ग मिल सकते हैं।